हरितमय ह्वै ग्ये होली मेरी जन्म भूमि
चल गल्या फिर वीं धरा थै चूमी औला।
वर्षों बटी डाँडा काँठा खुदेणा छिन
चल दगड्या देवतों की भूमि घूमी औला।।१।।
वर्षों पुराणी तिबरी उजणी होली
तक मूसौं कू मण्डाण देखी औला
कूड़ो का चौतरफा कण्डाली जमी होली
चल भैजी वीं कण्डाली थै झाड़ी औला।।२।।
काफलों की डाली जग्वाल बैठीं होली
नवाण की द्वी चार दाणी खैकी औला
शहर की ईं निर्भागी गुलामी छोड़ीकी
कुछ दिन मातृ भूमि थै देखी औला।।३।।
दनकदा गौरूं की घण्डोली सुणैली
अर गढ़सूम्याल की बँसुरी की भौण सूणी औला
डाँडी काठ्यों कू मुलूक घूमी की
अपड़ो खत्यूं बचपन थै फिर से उकरी लौला।।४।।
देवभूमि की संस्कृति की झलक देखीकी
नेगी जी कू गढ़देश कू गीत गुन गुनोला ।
गंगोत्री यमुनोत्री अर बद्री केदार का दर्शन कैरिकी
इष्ट कुल का खुदेड़ देवतों थै मनै की औला।।५।।
रिश्ता नातों की डाली सुखणी होली
चल भै उं अपणा रिश्तों थै हेरी औला
अपड़ो का संग अब मिली जुली रौला
चल ददा कुछ दिन अपड़ा पहाड़ घूमी औला।।६।।
रीतमय ह्वै ग्ये होली मेरी जन्म भूमि
चल गल्या फिर वीं धरा थै चूमी औला।
वर्षों बटी डाँडा काँठा खुदेणा छिन
चल दगड्या अब देवभूमि म बसि जौला।।७।।
उत्तराखण्ड, भारत।