पहिया (दोहा)
जिन्दगीकी राहमे लुढकत रहि पहिया,
बिना काँखे, बिन चिल्लाए सुसकत रहि पहिया ॥
सबेरोसे संझातक, किढरत रहि पहिया,
कहाँ पुगैगो पता नैया, बिन सैँताय चलत रहि पहिया॥
बकरेहरोसे गयाँरो, गयाँरोसे हरबहिया,
डीला,कटिला कुछ नाय देखय, सबके रौँथत रहे मिर भैया ॥
नाय जा को छोर हय, नाय जा को अन्त,
गोल मटोल अंग जा को, घुमत रहबय फिरि फन्ट ॥
का के तुम नाय पाए, का के ढुँढ रहे हव,
अन्त काल तक कोइ नाय चलए, काहे तडप रहे हव ॥
कुछ मिलए-ना मिलाए, किढरनो सबको धरम हय,
कुइ बाहन चढे फिरयँ, कुइ नंगे पाव, अपनो अपनो करम हय ॥
बिना ढकेले ना चलए, बिन रोके ना रुकय,
धक्का मारके अग्गु बढय, गहिरी घाट तक उखरय ॥
-पदम राना,
पचढकी कञ्चनपुर, नेपाल