हिन्दूओँको लडाने की चाल- अयोध्या विवाद

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जनकपुर में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाली प्रधानमंत्री केपी ओली । फाइल तस्वीर

-किशोर चंद्र गौतम

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इस वक्त राम जन्मभूमि अयोध्या के लिये नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने जो कहा उस से बडा हंगामा हो गया। सोमवार नेपाली भाषा के आदिकवि भानुभक्त आचार्य के जन्म जयन्ती के अवसर में ओली ने दाबा किया कि अयोध्या नेपाल के ठोरी जंगल के आसपास है। यह जगह भारत के विहार राज्य के पास है। इस से नेपाल और भारत के बीच मामला और गहरा हो गया।

उनका कहना था कि शादी के लिये अयोध्या से मिथिला तक आना मुश्किल था।

याद कीजिये जब भारत के कुछ लोग सिद्धार्थ गौतम के जन्मस्थल भारत में है बोलते है तो नेपाल में कितना आक्रोश दिखता हैं? तो कल्पना कीजिये जब नेपाल के प्रधानमंत्री किसी प्रमाण विना भगवान राम ‍और उनके जन्मस्थल अयोध्या नेपाल में होने की बात करेंगे तो भारतीय हिन्दूओं के मन में क्या खटास पैदा नहीं होगी? जरुर पैदा होगी।

लगता है, खटास और आक्रोश पैदा करना ही इस अभिव्यक्ति का मुख्य उद्देश्य था।

अपने राजनीतिक दुकान चलाने के लिये नेतागण जो कुछ भी बोल देते हैं। यह उचित नहीं है।

जब दोनों सत्ताओं की कटुता में नेपाली और भारतीय समाज के जड में स्थित स्नेह न हिल पाई तो दो देशों में रहे हिन्दूओं के आपसी स्नेह और सद्भाव तोडने के लिये राष्ट्रवादके उन्मादी मुखौटे में छुपकर यह षडयंत्र रचा गया है।

इस में अपनी कूटनीतिक स्वार्थ और धार्मिक षडय‌ंत्र के लिए अनेक शक्तियाँ संलग्न हैं।

ओली को तो राष्ट्रवादी दिखाकर अपने प्रतिस्पर्धी और अपने पार्टी के नेताओं को कमजोर करना है। बस्। अपनी इस अहंपूर्ति के लिए हर विध्वंश के लिए तैयार है केपी ओली जी। अपने राजनीतिक दुकान चलाने के लिये नेतागण जो कुछ भी बोल देते हैं। यह निकास की बात हो नहीं सकता।

यदि प्रधानमंत्री जी को वाकई लगता कि वास्तविक अयोध्या नेपाल में है तो वह अनुसन्धान कराते, वहाँ तीर्थ क्षेत्र निर्माण कराते, धर्म सभा बुलाते। पर ये सब कुछ नही करेंगे। सारा विश्व जिस अयोध्या को राम जन्मभूमि मानता है उसको बातों ही बातों में चुनौती देते हैं और बोल देते हैं कि वास्तविक अयोध्या तो नेपाल में है।

उनकी अभिव्यक्ति में नेपाल में तीर्थस्थल निर्माण, उसमें गम्भीरता जैसी कोई बात है ही नही। बस् एक ही उद्देश्य है नेपाल और भारत के हिन्दूओँ मे फूट और द्वेष बीज रोपण करने की।

मैं रामेश्वरम को अपना मानता हूँ, मैं अवध में अयोध्या को अपना मानता हूँ।

अब हम दोनो देशोँ के हिन्दू समाज और ॐकार परिवार का दायित्व बनता है कि हम इस षडय‌ंत्र को विफल करें। सर्वप्रथम द्वेषभाव से अपने को मुक्त रखेँ। राष्ट्रवाद के उन्माद में नेपालीओँ को उन्मत्त करके हमारे हिन्दू समाज के बीच द्वेष के बीजारोपण की विदेशी षडयंत्र से हम सजग रहेँ। तमिलनाडु के तमिल लोग गंडकी में स्नान करने और पशुपति के दर्शन करने का सपना देखते हैं। वे पशुपति नाथ को अपना मानते हैं। मैं रामेश्वरम को अपना मानता हूँ, मैं अवध में अयोध्या को अपना मानता हूँ।

भारतीय सत्ता से हमारा मतभेद है। उनकी दबंग शैली से हमारा स्वाभिमान आहत होता है, हम एकजूट होकर प्रतिकार करते रहे हैं आगे भी करेंगे। मगर भारतीय हिन्दू, बौद्ध, जैन समाज परापूर्व काल से हमारा सुहृद रहा है। सत्ता और जनता के साथ सम्बन्ध अलग होते हैं। सत्ता में प्रेम नहीं होती मगर दिलों में प्रेम रहता है। इस बात को समझना जरुरी है।

भगवान रामचन्द्र के चरणों को याद करके सभी नेपाली मित्रों से हात जोडकर प्रार्थना करता हूँ कि इस साजिश को चीरने के लिए सभी मुखर बनेँ।

आपस मे स्नेह, सम्मान और भाइचारा बढाएँ। वर्ना हमारा राष्ट्र हमारी संस्कृति को ऐसे लोग बर्बाद करके छोडेंगे। जय श्री राम!!!

(गौतम जी नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय से आबद्ध हैं)

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